सत्य की नाव (भजन) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु26-Apr-2024
सत्यकी नाव (कविता) स्वेच्छिक प्रतियोगिता हेतु
कलयुग पांँव है आज फैलाया, सत्य की नाव लगा है डुबाया।
छल प्रपंचों ने डाला है डेरा, भाई- भाई का दुश्मन बनाया। हे प्रभु! मेरी विनती तो सुन लो, तेरे बिन पार ना कोई लगाया। कलयुग पांँव है आज फैलाया, सत्य की नाव लगा है डुबाया।
प्रभु नाम का कर लूँ मैं सुमिरन, तेरे दर से ना जाऊंँ मैं खाली। हिय में बस जाए बस तेरी सूरत, नाव डुबे ना हो तेरी छाया। कलयुग पांँव है आज फैलाया, सत्य की नाव को लगा है डुबाया।
मंदिर, मस्जिद में ना तुझको ढूंढ़ूँ, तू बस मेरे हिय में विराजे। कोई कर्मकांड में मैं ना उलझूँ, सारे भ्रम को जो तूने उड़ाया। कलयुग पांँव है आज फैलाया, सत्य की नाव को लगा है डुबाया।
काज कोई कभी भी करूंँ मैं, प्रभु तेरी स्मृति को ना भूलूंँ। मन से आसक्तियों को तजूँ मैं, सत्य की नाव तू जो चलाया। कलयुग पांँव है आज फैलाया, सत्य की नाव को लगा है डुबाया।
साधना शाही, वाराणसी